मंगलवार, 5 दिसंबर 2023

दक्षिण भारत में घृणा: मैकाले , श्रीराम और गौ मूत्र

अंग्रेजो ने जातिगत  और धार्मिक आधार पर सैनिक रेजीमेंट बनाकर, भारतीय सैनिकों की मदद से भारत पर कब्जा किया. ब्रिटिश राज के  भारत में स्थायित्व लिए जरूरी था की भारत के लोग एक दूसरे से घृणा करते रहे. मैकाले की शिक्षा प्रणाली का मुख्य उद्देश्य भारतीयों  में एक दूसरे के प्रति घृणा की भावना फैलाना था. आज हम सबको मालूम है, जो कंप्यूटर में फीड होता है वही कंप्यूटर उगलता है.  महात्मा पेरियारजी ने पढ़ा, भगवान श्रीराम के  नेतृत्व में उतर भारतीयों ने दक्षिण भारतीय को पराजित किया. उन्होंने  इसे सच मान लिया. पेरियार जी ने इस आधार पर रामकथा लिखी. परिणाम तमिलनाडु में उत्तर भारतीयों के खिलाफ घृणा फैलाने में ब्रिटिश कामयाब रहे. यदि पेरियारजी ने वाल्मीकि रामायण पढ़ी होती तो शायद उनकी राम कथा अलग होती. एक दिन ऑफिस में एक तमिलवासी सहयोगी  से यही चर्चा हुई. उसने कहा रामायण काल से आप हम पर अत्याचार कर रहे हो. मैंने कहा यह तुम्हारी गलत धारणा है. मैंने कहा रावण का राज्य दंडकारण्य से समस्त दक्षिण भारत तक फैला हुआ था. रावण की लंका सोने की थी अर्थात उसने संपूर्ण दक्षिण भारत को लूट कर लंका को सोने का बनाया था जैसे कि आज अमेरिकी एमएनसी  दुनिया भर से धन बटोरकर अमेरिका का खज़ाना भरती है. 

मैंने आगे कहा श्रीराम वनवास  बिताने विंध्याचल पार करके दंडकारण्य आए जो  पंच द्रविड़ (आज का महाराष्ट्र, कर्नाटक,  तेलंगाना, केरला, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश) प्रदेश का हिस्सा था. जहां राक्षसराज रावण का शासन था. श्रीराम की शबरी से मुलाकात दक्षिण भारत में हुई. वानरराज सुग्रीव से मित्रता भी दक्षिण भारत में हुई. श्रीराम और वानरराज सुग्रीव के नेतृत्व में  दक्षिण भारत में रहने वाले रहने वाली वनवासी जातियां वानर, भील, शबर इत्यादि को संगठित हुई. दूसरे शब्दोंमे दक्षिण भारतीयों की  मदत से  श्रीराम ने राक्षसराज रावण को पराजित किया.  दक्षिण भारत उतर के एक व्यक्ति की सहायता से  राक्षसी राज से मुक्त हुआ. उसने कहा उसने इस दृष्टि से कभी विचार किया ही नहीं. मैंने कहा इसमें तुम्हारा दोष नहीं है. मैंकाले शिक्षा प्रणाली हमारे दिमाग में जो प्रोग्रामिंग करती है हम उसे ही सच मानने लगते है. आज जरूरत है भारत का सही सामाजिक और राजनीतिक इतिहास पढ़ाने की ताकि हमे सच पता चले.

अभी हाल में एक दक्षिण भारतीय संसद ने गौ मूत्र और उत्तर भारतीय पर पर टिप्पणी की. शायद उसे मालूम नहीं, दक्षिण के एक राज्य केरल में सर्वाधिक आयुर्वेदिक चिकित्सक है और वे जानलेवा बीमारियों केंसर आदि की चिकित्सा में गौ मूत्र का उपयोग करते है. देश विदेश से हर साल हजारों रोगी वहां चिकित्सा के लिए आते है.  सांसद को यदि  सही जानकारी होती तो वे ऐसी टिप्पणी करते नहीं. 

श्रीराम ने उत्तर और दक्षिण भारत को राजनीतिक रूप से एक करने का कार्य किया.  बाद में केरल के आदि शंकराचार्य और दक्षिण के  संत रामानंद ने दक्षिण से उत्तर आकर  उत्तर भारतीय जनता को  प्रभु भक्ति का मार्ग दिखाया. देश को सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से एक किया. 


सोमवार, 3 जुलाई 2023

वार्तालाप : गुरु कैसा हो

 आज गुरु पूर्णिमा है, आज हम अपने गुरु के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। हमारे प्रथम गुरु हमारे माता-पिता हैं जो हमें संस्कार देते हैं। दूसरा गुरु हमारा शिक्षक होता है जो हमें ज्ञान प्रदान करता है।


अपने माता-पिता और शिक्षकों को चुनना हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन हमें धर्म मार्ग पर चलते हुए संसार और परमार्थ को सफल बनाने के लिए गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। हम वर्तमान और अतीत के महान संतों, महात्माओं से प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं, यही हमारे गुरु हैं।

अब हमारे सामने यह प्रश्न आता है कि गुरु कौन हो? समर्थ रामदास कहते हैं, "जो जैसा बोलता है, वैसा ही आचरण करता है, उसी की वाणी को लोग प्रमाण मानते हैं"। ऐसे व्यक्तियोंका ही लोग अनुकरण करते हैं। वचन और कर्म जिसके समान हो उसे ही गुरु मानना ​​चाहिए। इसका एक उदाहरण स्वामी रामदेव हैं जिन्हें लोग योग गुरु कहते हैं। क्योंकि वे खुद सुबह तीन घंटे नियमित योग करते हैं और कराते हैं। उनकी योग कक्षा भारतीय समय के अनुसार सुबह पांच बजे शुरू होती है, चाहे वह दुनिया के किसी भी हिस्से में हों। सांसरिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए हमें ऐसे ही गुरु की तलाश करनी चाहिए। दूसरा प्रश्न यह है कि हमें गुरु से क्या सीखना चाहिए जिससे संसार सुचारु हो जाए। श्रीमद भागवत में व्यास जी कहते हैं "कृष्ण वन्दे जगद्गुरु"। भगवान कृष्ण को जगतगुरु इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने जीवन भर निस्वार्थ भाव से अधर्म के विनाश के लिए कार्य कियाऔर पृथ्वी पर सत्य और धर्म की स्थापना की। ऐसा करते समय श्रीकृष्ण का कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं था। केवल समाज का कल्याण ही उनके जीवन का लक्ष्य था। उन्होंने चंगा करने के चमत्कार नहीं किये, जादू-टोना नहीं किया, किसी की घोड़ी नहीं ढूंढी, पानी में दीपक नहीं जलाया और किसी पर कृपा नहीं की। श्रीकृष्ण ने भ्रमित अर्जुन को सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने और निष्काम कर्म करने की सलाह दी। हमें ऐसे गुरु की तलाश करनी चाहिए। उसी के बताए रस्ते पर चलना चाहिए।

अंत में, हमें यह याद रखना चाहिए कि गुरु किसी व्यक्तिगत स्वार्थ को सिद्ध करने का साधन नहीं है। यदि कोई ऐसा आश्वासन देता है, तो वह निश्चित रूप से गुरु बनने के योग्य नहीं है।

जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं श्रीकृष्ण, समर्थ रामदास, स्वामी दयानन्द और उनकी परंपरा चलकर जो समाज के आर्थिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए कार्य करते हैं, उनको गुरु मानता हूँ और प्रेरणा लेता हूँ।

सोमवार, 8 मई 2023

वार्तालाप : जैसा बोले वैसा चले उसके वचन प्रमाण।

जैसा बोले वैसा चले उसके वचन प्रमाण 

समर्थ रामदास स्वामी कहते हैं, जो जैसा बोलता है, वैसा करता है और पहले करके और फिर दूसरों को उपदेश देता है, उसकी बातों पर लोग विश्वास करते हैं। लोग उसका अनुकरण करते हैं।  एक बहुत ही सामान्य अनुभव, हम छोटे-छोटे कारणों से अपने पड़ोसियों से झूठ बोलते हैं। हमें नहीं लगता कि हम कुछ गलत कर रहे हैं। इसलिए हम अपने बच्चों को कितना भी सच बोलना सिखाएं, हमारे बच्चे हमसे झूठ बोलते हैं। यह सच पचा पाना मुश्किल है कि हमारे अपने बच्चे जब हमसे झूठ बोलते हैं, वे हमारा ही अनुकरण कर रहे होते हैं।  समाज में रहने वाले लोगों में अपने बड़ों की नकल करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है, चाहे वह माता-पिता हों या नेता।

अब एक और उदाहरण 2016 में एक मन की बात कार्यक्रम में हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को खादी के कपड़े पहनने की सलाह दी। देश में खादी की बिक्री पिछले कुछ सालों में तीन गुना बढ़कर एक लाख करोड़ रुपये को पार कर गई। क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री खुद खादी पहनते हैं। देश के लोगों ने उनकी सलाह मान ली अर्थात उनका अनुकरण किया। लोग खादी के कपड़े खरीदने लगे। देश में खादी की बिक्री बढ़ी।

संक्षेप में, किसी को भी उपदेश देने से पहले हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम स्वयं उसका पालन करें। नहीं तो हमारी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा।

बुधवार, 19 अप्रैल 2023

वार्तालाप : वर्ल्ड हर्बल इनसाइक्लोपीडिया क्या है भाई?


करीब चार साल बाद मुझे दिल्ली के पुस्तक मेला देखने का मौका मिला। तीन-चार किताबें खरीदीं। अचानक मेरा ध्यान बहुत सुंदर आवरण और महीन कागज पर छपे विश्व हर्बल विश्वकोश के एक खंड की ओर गया।  मुझसे रहा न गया पुस्तक उठाकर उसके पन्ने पलटने लगा। मैंने वनस्पति विश्वकोश का ब्रोशर भी मांग लिया।  ब्रोशर में विश्व हर्बल विश्वकोश के 109 खंडो के बारे विस्तृत जानकारी थी। बीते 100 वर्षोंमे वनस्पति जगत में जो दुनिया में काम हुए हैं, उसमे यह वनस्पति विश्वकोश भी एक है।  यह कार्य विश्व में पहली बार भारत की किसी संस्था द्वारा किया जा रहा है। जिसपर हमें गर्व होना चाहिए।   

वनस्पति विश्वकोश औषधीय पौधों का एक बहु-विस्तृत संग्रह है। इस विश्वकोश का उद्देश्य दुनिया भर में फैले सभी पारंपरिक औषधीय पौधों के ज्ञान और उनके व्यापक उपयोग को एक पुस्तक में एक साथ लाना है। दुनिया भर में कुल 3.6 लाख पौधों की विविधता उपलब्ध है और इनमें से लगभग 60,000 पौधों का उपयोग दुनिया की पारंपरिक औषधीय प्रणालियों में किया जाता है। भविष्य में इन जड़ी-बूटियों का उपयोग मानव जाति के लाभ के लिए किया जा सकता है और आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा विभिन्न रोगों के लिए दवाएं तैयार की जा सकती हैं। एक अन्य उद्देश्य भारतीय पारंपरिक औषधीय ज्ञान को पेटेंट चोरों से बचाना है।

वनस्पति विश्वकोश में दुनिया भर में बोली जाने वाली लगभग 1,700 क्षेत्रीय भाषाओं में दुनिया के लगभग 60,000 औषधीय पौधे, 7500 वनस्पति वंश, 6 फ़ाइलोजेनेटिक समूहों में 50000 पौधों की प्रजातियाँ, 1024 टेरियोफाइट्स, 850 कवक, 274 ब्रायोफाइट्स, 378 शैवाल, 44794 एंजियोस्पर्म, 536 जिम्नोस्पर्म शामिल हैं। इसमें 6 लाख ग्रंथ सूची स्रोत, 2.5 लाख पौधों के पर्यायवाची शब्द, 12 लाख स्थानीय नाम, 1300 ज्ञात रोगों के लिए 2200 से अधिक दवाएं भी शामिल हैं। इसके अलावा प्रामाणिक 30500 कैनवस पेंटिंग, 35000 औषधीय पौधों के रेखाचित्र हैं। इसके अलावा, इसमें यूरोपीय, अमेरिकी, अफ्रीकी, ऑस्ट्रेलियाई और एशियाई औषधीय प्रणालियों और उनमें इस्तेमाल होने वाली दवाओं के लिए अलग-अलग खंड हैं। अंतिम खंड में एक उपसंहार है।

यह विश्वकोश 109 खंडों में पूरा होगा। इस विश्वकोश के निर्माण में  25 पोस्ट डॉक्टरेट, 50 पीएचडी धारक, नैदानिक ​​शोधकर्ता, वनस्पतिशास्त्री, टैक्सोनोमिस्ट, माइक्रोबायोलॉजिस्ट, बायोटेक्नोलॉजिस्ट और अन्य वैज्ञानिकों सहित 900 वैज्ञानिक शामिल हैं। इसके अलावा 31 आईटी विशेषज्ञ और अन्य 120 आयुर्वेदिक डॉक्टर, 40 भाषाविद हैं। इन सभी के समन्वय में सैकड़ों निःस्वार्थ कार्यकर्ता और कर्मचारी शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश वैज्ञानिकों ने अल्प वेतन पर या सेवा के रूप में काम किया है। अन्यथा इस कार्य को पूरा करना असम्भव हो जाता है। इस विश्वकोश के अब तक 70 खंड प्रकाशित हो चुके हैं। पहले खंड का विमोचन  माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 3 मई 2017 के द्वारा हुआ था। 

आचार्य बालकृष्ण ने 15 साल पहले इस काम को करने का संकल्प लिया था। लेकिन यह काम हिमालय पर चढ़ने से भी ज्यादा कठिन है। यह एक अलग विषय है लेकिन आचार्य बालकृष्ण बिना ऑक्सीजन के हिमालय की 25000 फीट ऊंची पर्वत चोटी (रक्तवर्ण हिमाद्रि की चोटियाँ) पर चढ़ चुके  हैं। हिमालय का पुत्र होने के कारण यह कार्य उनके लिए कठिन नहीं था। उनकी 15 से अधिक वर्षों की तपस्या और दुनिया भर में वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रहे संगठनों की मदद से यह महत्वपूर्ण कार्य पूर्णता की ओर अग्रसर है।

यह काम एक-एक कदम बढ़ते हुए  शुरू किया गया। सबसे पहला काम था आयुर्वेद में इस्तेमाल होने वाले पौधों का पता लगाना। आज आयुर्वेद में लगभग 700 जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है। लेकिन औषधियों की वास्तविक संख्या जानने के लिए आयुर्वेद में प्रयुक्त होने वाली औषधियों का पता लगाना आवश्यक है। इसके लिए देश-विदेश में सुरक्षित पांडुलिपियों की खोज कर उन्हें डिजिटाइज करने का कार्य किया गया। 50801 ताड़पत्र पांडुलिपियों सहित 60000 से अधिक पांडुलिपियों सहित 63 लाख से अधिक पृष्ठों का डिजिटलीकरण किया गया। इसमें आयुर्वेद सहित 18 विषय हैं। पतंजलि ने दो दर्जन से अधिक प्राचीन आयुर्वेदिक पुस्तकोंका प्रकाशन भी किया। इन पुस्तकों से आयुर्वेदिक शिक्षकों, छात्रों और दवा निर्माताओं को लाभ होगा। इसके अलावा पेटेंट हासिल करने और भारतीय हितोंकों सुरक्षित करने में मदद मिलेगी। यह कार्य अब भी जारी है। भारत में पाए जाने वाले 20000 पौधों में से 1000 से अधिक जड़ी-बूटियों का उपयोग भारत की विभिन्न पारंपरिक औषधीय प्रणालियों में किया जाता है। आचार्य बालकृष्ण के अनुसार भारत में और 5 से 7 हजार पौधों की जड़ी-बूटी के रूप में खेती की जा सकती है। इसके लिए शोध की जरूरत है।

पतंजलि हर्बल गार्डन: इस हर्बल गार्डन का मुख्य उद्देश्य भारत में उपलब्ध औषधीय पौधों का संरक्षण और प्रचार-प्रसार करना है। पूरे भारत से 1,000 से अधिक औषधीय पौधे, झाड़ियाँ, पेड़ और लताएँ वैज्ञानिक समुदाय और आम जनता दोनों द्वारा उपयोग की जाती हैं।

पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन हर्बेरियम (पीआरएफएच) न्यूयॉर्क बॉटनिकल गार्डन, यूएसए द्वारा मान्यता प्राप्त है। 2,000 हर्बेरियम शीट्स पर पूर्वी और पश्चिमी हिमालय और उच्च गंगा के मैदानों से भारत के विभिन्न हिस्सों से टेरिडोफाइट्स, जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म के 10,000 पौधे। छात्र और शोधकर्ता दोनों मामूली शुल्क देकर यहां पौधे की पहचान का प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं।

वैदिक नामकरण प्रणाली: दुनिया में 3.6 लाख पौधों की प्रजातियाँ हैं और उनके वैज्ञानिक नाम लगभग 13 लाख तक पहुँचते हैं। यह स्थिति  भ्रम पैदा करती है। इसके अलावा वनस्पति विज्ञानियों को पौधों के नाम याद रखने में कठिनाई होती है। संस्कृत एक वैज्ञानिक भाषा है। भाषाविदों और आयुर्वेदिक दिग्गजों की मदद से "वैदिक नामकरण प्रणाली" विकसित की। वैदिक नामकरण पौधों की बाहरी और शारीरिक विशेषताओं पर जोर देता है और इस तरह से सार्थक तरीके से क्यूरेट किया गया  कि पौधों की पहचान बिना किसी विशेष उपकरण के उपयोग के की जा सकती है, इसके अलावा पौधों के लिंग और फाईलोजेनेटिक समूह को निर्दिष्ट किया जा सकता है। इसके अलावा, भविष्य में खोजे गए पौधों को भी नाम दिया जा सकता है, इस प्रकार वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक उपयोगी डेटाबेस तैयार किया जा सकता है। वनौषधि एनसाइक्लोपीडिया दुनिया के लगभग 60,000 औषधीय पौधों के लिए एक पूर्ण नई संस्कृत नामकरण (द्विपद पैटर्न में) प्रदान करने वाली पहली पुस्तक है। नामकरण की उत्पत्ति के लिए वैज्ञानिक आधार के साथ परिवार से लेकर जीनस और प्रजाति स्तर तक का है । वैदिक नामकरण के प्रयोग को अन्तर्राष्ट्रीय शोध पत्रों ने स्वीकार किया है।

औषधीय पौधों के चित्रों का संग्रहालय: विश्वकोश बनाने में सबसे बड़ी समस्याओं में से एक पौधों के चित्र थे। उपलब्ध तस्वीरों या चित्रों में से अधिकांश के कॉपीराइट होने की संभावना थी। इसके अलावा इनकी प्रमाणिकता पर भी प्रश्नचिन्ह लग सकता था। अत: वनस्पति विश्वकोश में इस्तेमाल के लिए  दुनिया के सभी औषधीय पौधों के नए  सिरे से कैनवास पेंटिंगस बनाने का निर्णय लिया गया। कई वनस्पति विज्ञानियों और चित्रकारों की मदद से 35,000 कैनवस पेंटिंग और औषधीय पौधों के 30,000 रेखाचित्र बनाए गए। इस काम में कई साल लग गए। इन चित्रों का उपयोग हर्बल विश्वकोश में किया गया  है। यह संग्रह  औषधीय पौधोंका विश्व का सबसे बड़ा संग्रहालय है

वनस्पति विश्वकोश, वनस्पतिशास्त्रियों, पारम्परिक चिकित्सकों/चिकित्सकों के लिए उपयोगी होगा। यह विश्व की विभिन्न जड़ी-बूटियों पर शोध के नए रास्ते खोलेगा। इससे बढ़ते हर्बल दवा उद्योग विशेषकर आयुर्वेद को लाभ होगा। विश्व हर्बल विश्वकोश का प्रत्येक खंड 800 से 1000 पृष्ठों का है। प्रत्येक खंड की लागत लगभग 7000 रुपये है। प्रश्न पूछे गए और उत्तर दिए गए, एक विश्वकोश के निर्माण में शामिल समय, जनशक्ति और करोड़ों का  खर्च  को देखते हुए, लागत बहुत कम है। बिना किसी की मदत पतंजलि ने खुद यह कार्य किया है। 

रविवार, 16 अप्रैल 2023

आर्थिक युद्ध: भारतीय शहद को बदनाम करने का षडयंत्र

गत 15 वर्षों में भारत में शहद का उत्पादन 27000 एमटी से बढ़कर 1,33,200 एमटी (2022) तक पहुँच गया है। सन 2030 तक इसे दुगना करने का लक्ष्य है। भारत उत्पादन का आधे से ज्यादा शहद निर्यात करता है। जाहीर है भारत के इस उद्योग में बढ़ते कदम का नुकसान विदेशी उत्पादकों को होगा ही। भारतीय शहद उद्योग को धक्का पहुँचने के लिए  भारत की बड़ी कंपनियों के शहद के बारे में भारतीय जनता में भ्रम फैलाया का कार्य करना ही आर्थिक युद्ध है। इसके तहत भारत में शहद बनाने वाली बड़ी कंपनियों को भारत में ही बदनाम कर दिया जाए।  हमारे देश की पढ़ी-लिखी जनता भी यूरोप से कोई रिपोर्ट आई तो उसपर  बिना सोचे समझे  आंख बंद करके भरोसा करती है। इसके सिवा हम भारतीय पैसे के लिए चाहे नौकरशाह हो, पत्रकार हो या तथाकथित एनजीओ आसानी से बिक जाते है। भारतीय कंपनियों के शहद को भारत की प्रयोगशालाओं नकली सिद्ध करना संभव ही नहीं। तो यूरोप में ही सही। एक भारतीय एनजीओ की मदत से यह कार्य यूरोप के  गत वर्ष यूरोप में हुआ। 

हम सभी जानते हैं भारत गर्म देश है। यहां के फूलो में खुशबू और मिठास होती है। भारतीय शहद औषधि गुणों से भरपूर होता है। इसी कारण  अमेरिका जैसा देश जो दुनिया का सबसे ज्यादा शहद उत्पादन करता है वह भी भारत से सबसे ज्यादा शहद खरीदता है। अब यूरोप की बात करे अधिकांश भाग ठंडा है। वहाँ के फूलों में खुशबू और मिठास नहीं होती। अत: यूरोप के शहद का मापदंड अलग है। इसी आधार पर भारतीय शहद के बारे में भ्रम फैलाया जा सकता था। यूरोप एक देश की एक छोटी प्रयोगशाला जिसके पास ३०० फूलोंके मार्कर थे जिसमे से ८५ प्रतिशत यूरोपियन फूलों के थे। भारतीय शहद के बारे में भ्रम फैलाने के लिए इसी प्रयोगशाला का उपयोग हुआ। भारत के एनजीओ के मुताबिक भारत  के सभी प्रमुख ब्रांड के शहद उस प्रयोगशाला में टेस्ट किए और रिपोर्ट के अनुसार यूरोपियन मापदंड के अनुसार अधिकांश बड़े भारतीय ब्रांड के शहद में मिठास ज्यादा थी। वह यूरोपियन मापदंड के अनुसार नहीं थे।   

बस फिर क्या भारतीय मीडिया में इस रिपोर्ट को उछाल दिया। मीडिया ने भी बिना विचार किए  पाँच की पंचायत में  इस पर चर्चा की। भारतीय ब्रण्ड्स को बदनाम किया। मजेदार बात  हमारे उपभोक्ता मंत्रालय ने भी वेब साइट पर उस रिपोर्ट को डाल दिया।  किसी ने प्रश्न नही पूछा क्या सचमुच भारतीय शहद ही वहां टेस्ट हुए थे? क्या शहद बनाने वाली कंपनियों से सहमति ली गई थी? क्या उस प्रयोगशाला के पास कोई वैधानिक अधिकार था? वैधानिक नियमोंका पालन किया गया था?  जिन शहद उत्पादकों के पास खुद की प्रयोगशाला नहीं होती वह दूसरी लैब जिन्हे इस कार्य के लिए भारत सरकार ने अधिकृत किया है अपने शहद की क्वालिटी की जांच नियमित कराते है। सबसे बड़ा सवाल क्या उस लेब के पास भारतीय फूलोके मार्कर थे? क्या भारतीय मापदण्डों के अनुसार टेस्टिंग हुई थी? इन सभी के जवाब नकारात्मक मिलते। क्या उपभोक्ता मंत्रालय को भारत सरकार के fassai के मापदंड और अधिकृत प्रयोगशालाओं पर विश्वास नहीं है, या बात कोई दूसरी है।    

बाकी सवाल ना उठने का कारण मुझे बताने की जरूरत नहीं है। सभी समझदार लोग जानते हैं। परिणाम सभी भारतीय कंपनियों डाबर से पतंजलि को बड़े-बड़े विज्ञापन  प्रमाण पत्र सहित अखबारों टीवी पर देकर उनका शहर शुद्ध है यह बताना पड़ा। करोड़ों रुपए उनके इस में खर्च हुए। फिर भी बहुत से लोग इस रिपोर्ट पर  विश्वास करेंगे और माल में महंगे दामों पर निम्न दर्जे के विदेशी शहद खरीदेंगे।   

फेक और भ्रमित कारणे वाली रिपोर्ट्स कैसे तैयार की जाती है, इसका एक अंदाजा सभी को हो गया होगा। 

गुरुवार, 30 मार्च 2023

वार्तालाप (4): मन में उठने वाले सकारात्मक और नकारात्मक विचार

 

मानव मन एक अथाङ्ग सागर है। हर क्षण करोड़ों विचार तरंगे हमारे मन मे क्षण भर के लिए उठती है और नष्ट हो जाती है। परंतु कुछ विचार तरंगे सदा के लिए हमारी स्मृति मे दर्ज हो जाती है। हमारे धर्मग्रंथ कहते हैं, विधाता के मन में विचार आया और सृष्टि का निर्माण हुआ। हमारे प्राचीन ऋषियोंका कहना है की "इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी है वह हमारे शरीर में भी है।" अरबों खरबों सूष्म कोषों से हमारे शरीर की निर्मिति हुई है। प्रत्येक सूष्म कोष का स्वतंत्र अस्तित्व होता है ऐसा विज्ञान मानता है। प्रत्येक सूष्म कोष में दर्ज विचार एक ब्रह्मांड की निर्मिति करने में सक्षम है। मन में उठने वाले विचार ही कोषों में स्मृति का निर्माण करते हैं।  ब्रह्मांड के निर्माण के साथ ही इन कोषों की स्मृति भी बढ़ती रहती है और उसी स्मृति के अनुसार पृथ्वी पर मानव समेत सभी जीव-जन्तु, वनस्पतियोंका निर्माण हुआ है। मनुष्य के  समस्त जीवन, धर्म अर्थ काम और मोक्ष तक का प्रवास, कोषों में दर्ज स्मृतियाँ ही तय करती है। मनुष्य कोषों में दर्ज स्मृति अपनी भविष्य की पीढ़ी को भी देता है। इसीलिए हमारी शारीरिक और मानसिक बनावट हमारे पूर्वजों की तरह होती है। पूर्वजों की बीमारियाँ भी हमे इसी वजह से मिलती है। 

मन में उठने वाले सकारात्मक विचारों से  सकारात्मक स्मृतियों बनती है जो मनष्य को धर्म मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। मनुष्य को ज्ञानवान, कर्मशील और पुरुषार्थी बनाती है। सभी प्राणियोंके जीवन के अधिकार का सम्मान करना सिखाती है। दूसरी ओर नकारात्मक विचार नकारात्मक स्मृतियाँ बनाते हैं जो हमारे शरीर में स्थित सूष्म कोषों को भ्रमित करती हैं। भ्रमित कोष शरीर को ही  शारीरिक और मानसिक हानी पहुंचाने लगते हैं। मनुष्य ज्ञानहीन, कर्महीन, अधर्मी और हिंसक बन जाता है। युद्ध, रोग आत्महत्या इत्यादि का मुख्य कारण मन में उठने वाले नकारात्मक विचार ही है।   

मनुष्य जाती का अस्तित्व ही सकारात्मक विचारों पर टिका है। नकारात्मक विचार हिंसा को जन्म देते हैं और धरती के समस्त जीवन को नष्ट कर सकते हैं। इसलिए सकारात्मक सोचो इस से हमारे सूष्म कोष सृजन कार्य में व्यस्त रहे और पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व बना रहे। 


मंगलवार, 21 मार्च 2023

अप त्यम्  परिपन्थिनम् मुषीवाणम् हुरःचितम् । 
दूरम् अधि  स्रुतेः अज॥
(ऋ.१/४२/३)

ऋषि परमेश्वर से चित्त में उठने वाली मूषक प्रवृति से रक्षा की प्रार्थना कर रहा है। मूषक प्रवृति का अर्थ बिना मेहनत किए दूसरों की वस्तुएँ हड़पने की कभी न समाप्त होने वाली इच्छा, जैसे चूहा हमेशा दूसरोंकी वस्तुएँ कुतरता रहता है। वह दूसरों के खेत से, घर से वस्तुएँ चुरा-चुरा कर अपने बिल में इकठ्ठा करता रहता है। उसकी भूक कभी शांत नहीं होती। मूषक प्रवृति का शिकार मनुष्य भी स्वार्थ में अंधा होकर दूसरों की संपत्ति, धन, दौलत, स्त्री हड़पने के लिए नाना षड्यंत्र रचता है। वह चोरी करता है, डकैती डालता है, रिश्वत लेता है, इत्यादि। समर्थ रामदास कहते हैं, ऐसा करने से पाप इकठ्ठा होता है और एक दिन उसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते है। चूहा भी पिंजरे में पकड़ा जाता है अथवा जहर खाकर मरता है। वैसे ही मनुष्य को भी मूषक प्रवृति के बुरे नतीजे भुगतने पड़ते हैं। आज हम देखते है, समाज के कई शक्तिशाली व्यक्ति भी इसी मूषक प्रवृति के शिकार होकर जेल की सजा काट रहे है। 

आजकल पूरा समाज ही इस मूषक प्रवृति का शिकार हो रहा है। उसे बिजली, पानी, राशन, शिक्षा, इलाज, बैंक में पैसा, जो जो सरकार दे सके  बिना कष्ट किए मुफ्त में चाहिए। कई राजनेता भी वोट बैंक के लिए समाज में मूषक प्रवृति को बढ़ावा दे रहे है। जिसका परिणाम मुफ्त की आदत पड़ने पर अधिकांश लोग मेहनत करना छोड़ देंगे। खेती-बाड़ी उद्योग धंधे समाप्त होने लगेंगे। पाप इकठ्ठा होने से जनता भूक, अराजकता और हिंसा से पीड़ित होने लगेगी। अभी भी समय हाथ से नहीं गया है। समाज में फैली इस दुष्प्रवृति पर लगाम लगाना आवश्यक है।